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हंगामे के बीच लोकसभा में केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय स्थापना विधेयक को मिली मंजूरी

Posted on December 8, 2023 - 1:16 pm by

तेलंगाना में केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना के विधेयक को लोकसभा में मंजूरी मिल गयी है. इसके साथ ही 889.7 करोड़ रुपये की लागत से तेलंगाना के मुलुगु जिले में सम्मक्का सरक्का केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की होगी. केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2023, 4 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया गया था. विधेयक केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 में संशोधन करने का प्रयास करता है. विपक्षति दलों के विरोध के बावजूद इस विधेयक को बहुमत के साथ पारित किया गया. इसके साथ ही सदन ने विपक्षी सदस्यों द्वारा पेश किए गए संशोधनों को खारिज कर दिया. विधेयक पर बहस के दौरान, एक भाजपा सांसद ने यह भी सुझाव दिया कि देश को “गुलामी के सभी लक्षणों” से छुटकारा दिलाने के पीएम के लक्ष्य के अनुरूप “आदिवासी” शब्द को हटा दिया जाना चाहिए.

क्यों हो रही थी बहस

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के हालिया पत्र में कॉलेजों को पृष्ठभूमि में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की छवि के साथ सेल्फी पॉइंट स्थापित करने के लिए कहा गया था. यूजीसी ने देश भर के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को विभिन्न क्षेत्रों में भारत की उपलब्धियों के बारे में युवाओं के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए अपने परिसरों में स्ट्रेटेजिक पॉइंट पर सेल्फी पॉइंट स्थापित करने के लिए कहा था.

जिसको लेकर लोकसभा में विपक्षी दलों ने हंगामा शुरू कर दिया था. इसकी आलोचना करते हुए लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने आरोप लगाया कि पीएम मोदी लोकसभा चुनावों से पहले अपनी ”ढलती छवि” को बचाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.

हंगामे के बीच लोकसभा ने तेलंगाना में एक केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए एक विधेयक पारित किया. इसी के साथ तेलंगाना के मुलुगु जिले में सम्मक्का सरक्का केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय स्थापित करने की मंजूरी दी. यह नया विधेयक केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 में संशोधन करता है. केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2023 को अक्टूबर में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी दे दी गई थी. केंद्र ने सम्मक्का सरक्का केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के लिए 889.7 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं.

इसी दौरान भाजपा सांसद सत्यपाल सिंह ने सुझाव दिया कि देश में आदिवासी विश्वविद्यालयों में उपसर्ग “आदिवासी” नहीं होना चाहिए, उन्होंने कहा कि इस तरह के “विभाजन” पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है.

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