Skip to main content

क्या हमें लक्षद्वीप से वाकई प्यार है या यह हमारा पाखंड मात्र है?

Posted on January 9, 2024 - 12:31 pm by

हम इतना आंदोलित होते नहीं दिखते जब संवेदनशील हिमालय को तोड़ा जाता है या हसदेव अरण्य जैसे अनमोल जंगल की हत्या की जाती है. पश्चिमी तट पर हमें खिलखिलाता लक्षद्वीप दिखाया जा रहा लेकिन पूर्वी तट के आगे अंडमान-निकोबार द्वीपों में 72000 करोड़ के अल्ट्रा मेगा प्रोजेक्ट लाकर उसकी दुर्लभ जैव विविधता को नष्ट करने की तैयारी है.

मालदीव-लक्षद्वीप विवाद के बारे में बोल रहे कितने लोग प्रकृति को करीब से महसूस करते हैं, मैं नहीं कह सकता. प्रकृति का कोई भी नज़ारा चाहे वो खिड़की से दिखने वाली सुबह की लाली हो, हिमालय की धवल चोटियां या सुदूर समुद्र तट पर उठती-गिरती लहरें, सबका अपना मज़ा है। इन ख़ूबसूरत नज़ारों को लेकर फैलाई कड़वाहट बताती है कि हम प्रकृति की सुंदरता नहीं अपनी कुरूपता में खोये हैं.

अगर आप हिन्दुस्तान में घूमे हैं और अगर आपके पास कुदरत की अठखेलियां देखनी की नज़र और पवित्रता है तो आपको हर जगह खूबसूरत लगेगी. पंजाब-हरियाणा में सरसों से लदे खेत, यूपी में चंबल के बीहड़ों से लेकर बलिया में गंगा की ख़ूबसूरती, बिहार के गांव, झारखंड के जंगल, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के झरने और पठार और अरण्य, बंगाल और ओडिशा की संस्कृति, कितना कुछ है.

अभी मैंने दक्षिण के तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र या पश्चिम में गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर में दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल और कश्मीर आदि का ज़िक्र ही नहीं किया. राजस्थान और उत्तर-पूर्व क्या कुदरती ख़ूबसरती में किसी से कम हैं? असल में जो सुंदरता हमें दिखाई जा रही है या जिसके लिये हम लड़ रहे हैं वह सुंदरता नहीं हमारे भीतर की कुरूपता है। हर विषय पर ध्रुवीकृत होकर बोलना और लड़ना हमारा नया शगल बन चुका है.

वरना हज़ारों ग्लेशियरों और हरियाली से भरपूर या 7,500 किलोमीटर की तटरेखा वाले इस देश के नागरिक तब अपने अभिमान के लिये इतना आंदोलित होते क्यों नहीं दिखते जब संवेदनशील हिमालय को तोड़ा जाता है या बहुमूल्य हसदेव अरण्य जैसे अनमोल जंगल की हत्या की जाती है और वहां रह रहे मूल निवासियों और आदिवासियों को उजाड़ा जाता है.

हम तब परेशान क्यों नहीं होते जब हमारे मैंग्रोव तबाह किये जाते हैं या शहरों का सीवेज पवित्र नदियों में छोड़ा जाता है। संयोगवश इस समय हमारे जंगल, झरने, समुद्र तट और हिमालयी क्षेत्र ही नहीं यहां रहने वाले लोग भी संकट में हैं. एक बड़ा ख़तरा पूर्वी तटों पर है जहां अंडमान-निकोबार द्वीप पर करीब 72,000 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट लाकर इस संवेदनशील क्षेत्र को हांगकांग, सिंगापुर और दुबई बनाने की योजना है.

इस कृत्रिम अभिमान और उत्तेजना ने प्रकृति से प्रेम या भारत की अस्मिता के लिये अभिमान जितना भी दिखाया हो लेकिन एक सुविधाभोगी समाज की पाखंडी प्रवृत्ति और दूरदृष्टिहीनता को अवश्य उजागर किया है.

हृदयेश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार

No Comments yet!

Your Email address will not be published.