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जलियांवाला बाग नरसंहार जैसा आदिवासियों का मानगढ़ धाम का इतिहास

Posted on November 17, 2023 - 11:50 am by

इतिहास में के पन्नों में कई ऐसे घटनाये दर्ज हैं जिन्हे आज तक याद किया जाता है. कुछ घटनाएं ऐसी थी जिन्हे वो स्थान वो सम्मान मिला जिसे लोग आज भी याद करते हैं और काफी लोकप्रिय भी है. जैसे की जलियांवाला बाग हत्याकांड. यह एक ऐसी घटना थी जिसने देश में अंग्रेजों के प्रति लोगों के मन में आक्रोश को जन्म दिया था. इस घटन से ज्यादातर लोग परिचित है, जहां लगभग चार सौ लोग शहीद हो गए थे.

किन्तु कुछ घटनाये ऐसी भी होती है जिन्हे वो स्थान नहीं मिल पता जो मिलना चाहिए था. जलियांवाला बाग के लगभग छह साल पहले अंग्रेजी सरकार ने उदयपुर संभाग के बांसवाड़ा स्थित मानगढ़ धाम पर जलियांवाला बाग से भी बड़े हत्याकांड को अंजाम दिया. जहां मेले में मौजूद हजारों वनवासियों पर अंग्रेजी सरकार ने जमकर गोलियां बरसाई और पंद्रह सौ से अधिक वनवासी शहीद हो गए थे. मानगढ़ में हुए उन शहीदों का नाम इतिहास के उन पन्नों में अब तक अंकित नहीं हो पाया जहाँ उहने होना चाहिए था. आज के ही दिन 17 नवंबर 1913 को आदिवासी क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया था.

मानगढ़ का इतिहास

मानगढ़ धाम बांसवाड़ा जिले में मध्यप्रदेश और गुजरात सीमा से सटा हुआ है, जो अमर वीर आदिवासियों के बलिदान का साक्षी है. हर वर्ष की भांति यहां 17 नवंबर 1913 को वार्षिक मेले का आयोजन होने जा रहा था. मेले में वनवासियों के नेता गोविन्द गुरु के आह्वान पर उस कालखंड में पड़े अकाल से प्रभावित हजारों वनवासी खेती पर लिए जा रहे कर को घटाने, धार्मिक परम्पराओं का पालना की छूट के साथ बेगार के नाम पर परेशान किए जाने के खिलाफ एकजुट हुए थे. तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उनकी सुनवाई करने के बजाय मानगढ़ धाम को चारों ओर से घेर लिया और मशीनगन और तोपें तैनात कर दी.

इसके बाद अंग्रेजी सरकार ने गोविन्द गुरु तथा वनवासियों को पहाड़ी छोड़ने के आदेश दिए थे. किन्तु वे अपनी मांग पर अड़े रहे. जिसके बाद अंग्रेजी शासन की ओर से कर्नल शटन ने वनवासियों पर गोलीबारी के आदेश दिए. आदेश के बाद एकाएक हुई फायरिंग हुई और इस फायरिंग में हजारों वनवासी मारे गए. अलग-अलग पुस्तकों में शहीद वनवासियों की संख्या पंद्रह सौ से दो हजार तक बताई जाती है.

इस फायरिंग में गोविन्द गुरु बच तो निकले थे पर अंग्रेजी शासन ने वनवासियों के नेता गोविन्द गुरु को हिरासत में ले लिया और अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई. हालांकि बाद में अदालत ने उनकी फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था. सजा काटने के बाद गोविन्द गुरु 1923 में जेल से रिहा हुए और भील सेवा सदन के माध्यम से आजीवन लोक सेवा में लगे रहे. 30 अक्टूबर 1931 में उनके निधन के बाद मानगढ़ धाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया और वहां समाधि बनाई गई. उनकी समाधि पर हर साल मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर लाखों वनवासी आदिवासी भील समाज उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने उमड़ता है. आज इसी मानगढ़ की 110वीं जयंती है.

17 नवंबर 1913 को मानगढ़ धाम में 1500 से भी ज्यादा भील आदिवासी क्रान्तिवीरों का हुआ था नरसंहार, आज शहादत दिवस का मनाया जा रहा 110वीं जयंती है

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