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आदिवासी नायक पूंजा राणा और हल्दीघाटी युद्ध का संबध

Posted on October 5, 2023 - 12:32 pm by

राणा पूंजा भील को हल्दीघाटी के युद्ध में अपना महत्वपूर्ण योगदान के लिया जाना जाता है । हल्दीघाटी के युद्ध को जीतने में महाराणा प्रताप का साथ “राणा पूंजा भील” ने बखूबी निभाया था। इसलिए महाराणा प्रताप ने ही पूंजा भील को “राणा” की उपाधि दी थी, जिसके बाद वे “राणा पूंजा भील” कहलाए। राणा पूंजा भील का जन्म 16वीं शताब्दी के दौरान राजस्थान के “मीरपुर” स्थान पर हुआ था। राणा पूंजा का नाम आदिवासी भील समुदाय में गर्व के साथ लिया जाता है।कहा जाता है की बहुत ही कम उम्र में राणा पूंजा भील को गांव का मुखिया बना दिया था, क्योंकि वह बचपन से ही बहादुर व पराक्रमी थे। ऐसा मन जाता है की राणा पूंजा भील की हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के साथ मेवाड़ को मुगलों से आजाद कराने में राणा पूंजा भील की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यहां तक कि गोरिल्ला युद्ध का रणनीति के रणनीति के जनक भी राणा पूंजा ही थे।

राणा पूंजा का परिचय

राणा पूंजा भील मेरपुर के मुखिया “दुदा होलंकी” के परिवार में जन्मे थे। इनकी माता “केहरि बाई” थी। पिता “दुदा होलंकी” की मृत्यु हो गई के बाद इन्हें मेरपुर के मुखिया का पद दिया गया और कुछ समय के बाद राणा पूंजा भील को भोमट का राजा बनाया गया। अरावली की पहाड़ियों में उन्होंने कई वषों तक राज किया। उनकी सेना छापामार युद्ध प्रणाली में काफी निपुण थी।

कैसे मिली राणा की उपाधि

सन 1756 ईस्वी में हल्दीघाटी का युद्ध हल्दीघाटी के मैदान में लड़ा गया था। मुगलों और मेवाड़ के बीच लड़े गए हल्दीघाटी युद्ध में पूंजा भील ने महाराणा प्रताप का साथ दिया था। पूंजा भील तथा उनके साथियों की युद्ध कला और उनकी सच्ची निष्ठा से खुश होकर उन्होंने पूंजा भील को राणा की उपाधि दे दी। यहाँ तक की हल्दीघाटी का युद्ध समाप्त होने के बाद महाराणा प्रताप ने मेवाड़ के राज्य चिन्ह पर एक तरफ राजपूत सैनिक तो दूसरी तरफ भील सैनिक की आकृति चिन्हित करवाई थी।ऐसा पहली बार था की आदिवासी आदिवासी सौदयो के नाम पर आकृति चिन्हित्त की गे थी। यह प्रतीक है की मेवाड़ के स्वतंत्र और स्वाधीनता संग्राम में भील समुदाय का उतना ही योगदान है की जितना राजपूतों का।

राणा पूंजा भील थे या राजपूत?

हाल ही में राणा पूंजा की अस्तित्वा पर सवाल खड़ा किया जा रहा है। वो राजपूत थे या भील इसको लेकर बहस का मुद्दा बनाया जा रहा है। भील समुदाय जहाँ एक ओर उन्हें अपना समुदाय का बताता है ओर प्रत्येक वर्ष उनकी जयंती मनाता है वही दूसरी ओर पानरवा के शाही परिवार, इसे गलत मानती है, सही परिवार का मानना है की राणा पुंजा एक सोलंकी राजपूत थे

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