2 जनवरी वर्ष 2006 की उस घटना की बरसी की याद दिलाता है जब ओडिशा पुलिस ने टाटा स्टील संयंत्र की चारदीवारी के निर्माण का विरोध करने आए आदिवासी ग्रामीणों की भीड़ पर गोलियां चला दी थीं. इस घटना में 13 आदिवासियों और एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई, जिससे पूरे ओडिशा में शोक की लहर दौड़ गई. इस घटना को बीते लगभग 16 साल हो गए हैं, यह घटना हमें आदिवासियों को अपने जमीन को बचाने के संघर्ष को याद दिलाती है.
कलिंगनगर में टाटा स्टील का एक प्रॉजेक्ट शुरू होने वाला था. किन्तु आस-पास के इलाकों में रहने वाले आदिवासी इसके लिए राजी नहीं थे. प्रॉजेक्ट के लिए सरकार उनकी जमीन ले रही थी. आदिवासी जमीन देना नहीं चाहते थे, कई आदिवासियों की जमीनें डरा धमकाकर कम दामों में ले लिया गया. वहीं कई आदिवासी इसका विरोध कर रहे थे. मगर इसका कोई असर नहीं दिख रहा था. जो कारखाना खुलना था, उसके चारों ओर दीवार बननी शुरू हो गई. इसके विरोध में आदिवासियों ने एक रैली बुलाई थी.जो बाद में रैली हिंसक हो गई.
हिंसक भीड़ को रोकने के लिए पुलिसवालों ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई. उस गोलीबारी में 13 आदिवासी मारे गए. मृतकों के शवों को प्रशासन ने अपने कब्जे में कर लिया. हंगामा हुआ, तो घटना के दो-तीन दिन बाद लाशों को उनके परिवारों के सुपुर्द किया गया. इतनी संख्या में लोगों का अंतिम संस्कार किया गया. इस भयावह घटना की चीख आज भी सुनाई देता है. अपने हक़ की लड़ाई में आदिवासी मारे गए और कॉर्पोरेट की जीत हुई. मासूम आदिवासियों के लाश तले टाटा स्टील कारखाने की नींव रखी गयी. विडंबना यह कि पुलिस गोलीबारी को उचित भी ठहराया गया. एक खबर के अनुसार यह मामला ओडिशा विधानसभा में भी पेश किया गया था. मामले में न्यायमूर्ति मोहंती आयोग की रिपोर्ट ने 2 जनवरी, 2006 को कलिंगनगर पुलिस गोलीबारी को उचित ठहराया था.
काटे गए थे पंजे
ऐसी खबर थी की जब लोगों ने मरने वालों के शव देखे, तो कई लोगों के पंजे गायब थे. मृतकों के परिजनों ने आरोप लगाया था कि सरकारी दूतों ने मृत प्रदर्शनकारियों के पंजे काट दिए थे. कुछ लोग तो ये इल्जाम भी लगाते हैं कि कुछ लाशों का लिंग कटा हुआ था. अब हथेलियों की पहचान करने के लिए कई साल से संघर्ष कर रहे हैं आदिवासी. मृतकों का अंतिम संस्कार बिना पंजों के ही किया गया था. इनकी पहचान खोजने के लिए जद्दोजहद जारी है. ओडिशा के जाजपुर जिले के कलिंगनगर में अंबागाड़िया नामक गावं है. जहाँ संदूक के अंदर एक केमिकल में कटे पंजों को सुरक्षित करके रखा गया है इस आस में कि कटे पंजों को पहचान मिलेगी.
पंजे काटने का इल्जाम तीन डॉक्टरों के माथे आया. प्रदर्शनकारियों की मौत के कारण पहले ही सरकार की किरकिरी हो चुकी थी. फिर ये पंजे कटने की घटना से दबाव और बढ़ गया. दबाव में आकर उन तीन डॉक्टरों को सस्पेंड कर दिया गया. बाद में ओडिशा हाई कोर्ट ने जब डॉक्टरों के हक में फैसला सुनाया, तो उनका सस्पेंशन भी खत्म कर दिया गया. सरकार ने इन हत्याओं की जांच करवाई. जांच कमीशन बैठा. एक नहीं, बल्कि तीन-तीन किसी सरकारी अधिकारी को सजा नहीं हुई. आदिवासी कल्याण, मुआवजा सारी रस्म अदायगी की बातें हुईं, मगर सजा किसी को नहीं हुई.
यहां हर साल 2 जनवरी को आदिवासी मनाते हैं ‘शहीद दिवस’
हर समाज के अपने-अपने नायक होते हैं. जो 13 लोग मरे, वो इन आदिवासियों के नायक हैं. उनके शहीद उनकी याद में गांव के अंदर एक स्मारक भी है. जिनकी याद में ये स्मारक बना है, उन सबके नाम का एक पत्थर भी है यहां उसके ऊपर मरने वाले का नाम दर्ज है. हर साल यहाँ के आदिवासी इस दिन को शहादत दिवस के रूप में मानते हैं. हर साल 2 जनवरी को जब दुनिया नए साल के जश्न का खुमार उतार रही होती है, तब स्थानीय आदिवासी इस स्मारक पर जमा होते हैं. ये दिन वहां के आदिवासियों के लिए शहीद दिवस’ होता है.
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