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आइए जानते हैं विलुप्त होती ‘जुआंग’ जनजाति के बारे में

Posted on October 13, 2023 - 3:16 pm by

जुआंग ऑस्ट्रोएशियाटिक जातीय समूह है जो केवल ओडिशा के क्योंझर जिले की गोंसाईका पहाड़ियों में पाया जाता है. इनकी संख्या काफी काम है. इसी वजह से इस जनजाति को पीवीटीजी के ग्रुप में रहा गया है. क्योंझर के अलावा सिर्फ गिने चुने जुआंग ओडिशा के ढेंकनाल जिले के पड़ोसी मैदानों में निवास करते है. जुआंगजनजाति की भाषा मुंडा परिवार से संबंधित है.

जुआंग जनजातियों की सघनता बंसपाल, तेलकोई और हरिचंदनपुर ब्लॉकों सहित कई स्थानों पर है. बेहतर जीवनयापन के लिए जुआंग गाँव अधिकतर मैदानी इलाकों में स्थापित किये गये हैं किन्तु वे क्योंझर में भी पर्याप्त संख्या में स्थित हैं. आधुनिकता की समावेश में अधिकांश जुआंगों ने बथुडी जनजातियाँ लोगों की आधुनिक जीवनशैली को अपना चुकी हैं. इसके साथ ही अन्य स्थानों पर आकर बस गईं हैं.

जुआंग लोगों को मूल रूप से थानिया और भागुड़िया नामक दो बड़े वर्गों में विभाजित किया जाता है. थानिया में जुआंग जनजाति के वे लोग शामिल हैं जो मूल मातृभूमि में बस गए हैं, जबकि भागुड़िया वे जुआंग लोग हैं जो किसी अन्य स्थान पर चले गए हैं.

जुआंग जनजातियों की उत्पत्ति का इतिहास

जुआंग जनजातियों का मानना ​​है कि आदिम काल में, उनकी उत्पत्ति गोनासिका पहाड़ियों पर पृथ्वी से हुई थी. इन पहाड़ियों में बैतरणी नदी का उद्गम स्थल है और यह क्योंझर के होंडा गांव से ज्यादा दूर नहीं है. जुआंग को ‘पटुआस’ के नाम से भी बुलाया जाता है जिसका अर्थ है ‘पत्ते पहनने वाले’. कुछ लोगों के अनुसार, जुआंग जनजातियों को पत्र-सावरस भी कहा जा सकता है, जहाँ पत्र का अर्थ पत्ती है. इस संदर्भ का हवाला देते हुए, इन जुआंग जनजातियों को सावरा जनजाति के उस उपखंड से संबंधित माना जाता है, जिनके आदिवासी सदस्य खुद को पत्तों से सजाते हैं.

इन जुआंग जनजातियों की भाषाएँ मुंडा समूह के लोगों से संबंधित हैं. उनकी अपनी अलग-अलग बोली है, जिसे प्रख्यात विद्वान कर्नल डाल्टेन ने “कोलारियन” कहा है. किन्तु कई उड़िया भाषी लोगों के प्रभाव के कारण, इनकी भाषाओं में कई उड़िया शब्द शामिल हो गए हैं.

जुआंग जनजातियों की सामाजिक संरचना इस प्रकार बनाई गई है ताकि ये अपनी मौलिकता और जातीयता बरकरार रख सकें। किसी भी अन्य आदिवासी लोगों की तरह, जुआंग जनजाति का गांव भी सबसे बड़ा ‘कॉर्पोरेट’ समूह है, जिसके अधिकार क्षेत्र में अलग-अलग प्रांत हैं। परिभाषित भूमि सीमाओं के भीतर इन जुआंग जनजातियों के पास अपनी भूमि पर ‘स्थायी’ और स्थानांतरित खेती दोनों का अभ्यास होता है। मुख्य रूप से, जुआंग संग्रहकर्ता और शिकारी थे, बाद में उन्होंने खेती भी विकसित की। खेती के सामान्य पेशे को अपनाने के अलावा, कुछ जुआंग जनजातियों ने बुनाई, सिलाई आदि भी अपना लिया है। जुआंग जनजातियों में से कुछ भी वन संसाधनों का दोहन करते हैं और इस प्रकार अपनी आजीविका बनाए रखते हैं। इसके अलावा, वे टोकरियाँ बनाने में भी माहिर थे और वे इससे खाद्य पदार्थ और पैसे का आदान-प्रदान करते थे।

सामाजिक संरचना

जुआंगजनजाति में प्रधान गाँव का मुखिया होता है और गाँव को नागम या बोइता या देहुरी के नाम से जाना जाता है. गाँव का पुजारी भी जुआंग जनजाति की पारंपरिक ग्राम पंचायत का हिस्सा है. जुआंग जनजातियाँ पितृवंशीय मानदंडों का पालन करती हैं.विवाह जुआंग जनजातियों की एक महत्वपूर्ण संस्था है. गोत्र मुख्यतः बहिर्विवाही होते हैं और इस प्रकार एक ही गोत्र में विवाह की अनुमति होती है. एक विवाह आमतौर पर प्रचलित है किन्तु बहुविवाह भी पूरी तरह से निषिद्ध नहीं है. जुआंग लोगों में एक प्रथा आम प्रचलित है. अगर पत्नी बांझ हो जाती है तो जुआंग पति आम तौर पर सहजन के पेड़ ‘सजना’ की पूजा करता है, और उसे उपभोग के लिए ‘सजना’ के फूलों और बीजों से बना पेस्ट भी देता है. कभी-कभी वह अपनी पत्नी के गले में सात गांठों वाला सात गांठ वाला सूती धागा भी बांधता है, यह सोचकर कि यह एक प्रकार का ‘ताबीज’ है जो उसे गर्भधारण करने में मदद करेगा. जुआंग जनजातियाँ अपनी गर्भवती महिलाओं को ‘देवीस्थान’ में जाने की अनुमति नहीं देती हैं. कुछ ऐसी चीजें हैं जिनसे उसे बचना चाहिए, जैसे किसी भी चीज को बांधना, चटाई बुनना और घर को मिट्टी से लीपना.

परम्परा

जुआंग जनजातियाँ बहुत सारे त्योहार मनाती हैं, विशेष रूप से कई धार्मिक त्यौहार उनके देवी-देवताओं के सम्मान में आयोजित किए जाते हैं.इन जुआंग जनजातियों के लिए, धरम देवता और बासुमाता प्रमुख देवता हैं. ‘ग्रामश्री’ गांव के देवता हैं. वे आत्माओं और भूतों में भी विश्वास करते हैं.स्थानीय आदिवासी देवताओं की पूजा करने के अलावा, वे हिंदू देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं, तथा वे अपने देवी-देवताओं को मुर्गियाँ और जानवर चढ़ाते हैं.

कुछ कटाई त्यौहार भी जुआंग जनजातियों के बीच लोकप्रिय हैं, जिनमें पूषा पूर्णिमा, अंबा नुआखिया, पिरहा पूजा, पिरहा पूजा, अखाया तृतीया, असरही, गहमा आदि शामिल हैं. जो उनके नृत्य और गायन इन सभी अवसरों को चिह्नित करते हैं. नृत्य प्रदर्शन के दौरान एक विशेष प्रकार का ड्रम बजाय जाता है जिसे चंगू कहा जाता है.

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