आदिवासी समाज में कई ऐसी परम्पराएं हैं जो अनूठी होती हैं. इस समाज में हर परंपरा का अपना महत्वा होता है. आदिवासी समुदाय के इसी परंपरा/ प्रथा में से एक प्रथा है ‘घोटुल’. घोटुल प्रथा आज भी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के आदिवासी क्षेत्रों में प्रचलित है. यह प्रथा मुरिया और माड़िया गोंड संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है. यह प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है. विशेषकर गोंड संस्कृति में उन्हें धार्मिक मान्यता प्राप्त है. छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों के माड़िया जनजाति में परंपरागत रूप से घोटुल को मनाया जाता है. घोटुल में आने वाले लड़के-लड़कियों को अपना जीवनसाथी चुनने की छूट होती है. इतना ही नहीं घोटुल को सामाजिक स्वीकृति भी मिली हुई है. घोटुल आदिवासी संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था को दर्शाता है. एक ऐसी संरचना जिससे की उनके सामाजिक प्रारूप कोको समझा जा सकता है.
क्या होता है घोटुल
आदिवासियों की एक विशिष्ट आकार की झोपड़ी या घर को ‘घोटुल’ कहा जाता है. मिट्टी या लकड़ी से बनी चौकोर या गोल झोपड़ी. इसके सामान्यत दो भाग होते हैं. घोटुल के सामने एक बड़ी खुली जगह होती है. इसके चारों ओर एक बाड़ होता है और इसमें एक गेट होता है. खुली जगह पर एक लकड़ी का खंभा होता है. इसलिए झोपड़ियों और घरों की दीवारों पर चित्र बनाए जाते हैं. पैर धोने या स्नान के लिए आंगन में एक बड़ा पत्थर रखा जाता है. घोटुल सामान्यतः गांव से दूर होते हैं, लेकिन कुछ घोटुल गांव के मध्य में भी हैं.घोटुल एक प्रकार का बैचलर्स डोरमिटरी होता है. जहां सभी आदिवासी लड़के-लड़कियां रात में बसेरा करते हैं. घोटुल में उस जाति से रिलेटेड आस्थाएं, नाच-संगीत, कला और कहानियां भी बताई जाती हैं. गांव के सभी कुंवारे लड़के-लड़कियां शाम होने पर गांव के घोटुल घर में जाते हैं.
इस आदिवासी समुदाय में जब बच्चा जब विवाह के लायक हो जाता है. उस समय वह घोटुल का रास्ता चुनता है. उसे बांस से कंघी बनानी होती है. वह अपनी पूरी कुशलता का इस्तेमाल करते हुए एक कंघी बनाता है, क्योंकि यह कंघी ही होती है, जो अपने भावी जीवनसाथी को चुनती है. जिसके बाद जब किसी लड़की को वह कंघी पसंद आती है, वह उसे चुरा लेती है. जिसे वह अपने बालों में लेकर घूमती है. जिससे यह पता चलता है कि वह लड़के से प्यार करती है. फिर वे सब मिलकर अपना घोटुल सजाते हैं. वे एक ही झोपड़ी में रहने लगते हैं. इस प्रकार घोटुल में जोड़े शादी के बंधन में बांध जाते है.
आधुनिकता और बाहरी लोगों के यहां आने और फोटो खींचने, वीडियो फिल्म बनाने के कारण ही यह परंपरा बन्द होने की कगार पर है. सदियों से चली आ रही परम्परा अब विलुप्ति के कगार पर है. धीरे धीरे यह आदिवासी लोगों में काम होता जा है. इसके पीछे बाहरी लोगों के घुशपैठ के अलावा नक्सलवाद भी है.
इस आदिवासी संस्कृति पर देश-विदेश से लोग रिसर्च करने आते हैं जो माओवादियों को नापसंद है. इसके लिए उन्होंने बकायदा कई जगह फरमान जारी कर इसपर बंदिश लगाने की कोशिश की है। उनकी नजर में यह एक तरह का स्वयंवर है. उनका मानना है कि कई जगह पर इस परम्परा का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है और लड़कियों का शारीरिक शोषण भी किया जा रहा है. अब देश कई इलाकों में यह परम्परा बंद हो गयी है.
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