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पुण्यतिथि: फादर स्टेन स्वामी, आदिवासियों और मानवाधिकार का सच्चा योद्धा

Posted on July 5, 2023 - 12:55 pm by

देशभर में आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की पुण्यतिथि की दूसरी बरसी मनायी जा रही है. साल 2020 में माओवादी समर्थक होने और महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव हिंसा में शामिल होने के आरोप में एनआईए ने गिरफ्तार कर लिया. उन्हें महाराष्ट्र के तलोजा जेल में बंद कर दिया गया.

स्टेन स्वामी को पार्किंसन बीमारी थी, जिसमें कि हाथ और पैर लगातार हिलते रहते थी. जेल में पानी पीने के लिए उन्होंने प्रशासन से स्ट्रॉ यानी पानी पीने के लिए पतली पाइप मांगी थी, लेकिन यह सुविधा उन्हें नहीं दी गई. साल 2021 में 5 जुलाई को जेल में ही उनकी मौत हो गई.

कौन हैं फादर स्टेन स्वामी




फादर स्टेन स्वामी का जन्म 26 अप्रैल 1937 को तमिलनाडु के त्रिची में हुआ था. उनके पिता किसान और माता गृहणी थी. समाजशास्त्र से परास्नातक करने के बाद उन्होंने बेंगलुरू स्थित डियन सोशल इंस्टीट्यूट में काम किया.

उसके बाद झारखंड आ गए और यहां के आदिवासी और वंचितों के लिए काम करते रहे. स्टेन ने शुरूआती दिनों में पादरी का काम किया. फिर आदिवासी अधिकारों की लड़ाई लड़ने लगे.

बतौर मानवाधिकार कार्यकर्ता झारखंड में विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन की स्थापना की स्थापना की. ये संगठन आदिवासियों और दलितों की अधिकारों की लड़ाई लड़ता है. स्टेन स्वामी रांची के नामकुम क्षेत्र में आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल और टेक्निकल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट चलाते थे.

आदिवासी अधिकारों के लिए फादर स्टेन स्वामी के कार्य


द प्रिंट में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2007 में सारंडा एक्शन प्लान के दौरान नक्सलियों को मदद करने के आरोप में पुलिस फोर्स ने 6 हजार से अधिक आदिवासियों को गिरफ्तार किया था. कईयों को गोली मारी गई, महिलाओं के साथ बलात्कार और घर तोड़े गए थे. इसी के दौरान फादर स्टेन स्वामी आदिवासियों के मदद के लिए आगे आये.

स्टेन स्वामी आदिवासियों के लिए उस समय भी आगे आये जब साल 2009 में ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाया गया. इसके बाल साल 2011 में ऑपरेशन अनाकोंडा चलाया गया. इसमें सिर्फ सारंडा क्षेत्र से 3 हजार से अधिक लोगों को जेल में डाला गया था.

गिरफ्तार हुए अधिकतर लोगों के पास पहचान पत्र तक नहीं था. स्थानीय लोगों को कानून की जानकारी देकर उन्हें तैयार किया था. इसका परिणाम यह हुआ कि जिस आंदोलन के कारण सीआरपीएफ 25 गांवों को घेर रखा था, उन्हें गांव छोड़ना पड़ा.

साल 2008-13 तक हुई गिरफ्तारियों को लेकर राज्यव्यापी अभियान चलाया. इसके बाद झारखंड हाईकोर्ट में रिहाई के लिए PIL दायर किया. साथ ही डिप्राइव ऑफ राइट्स ओवर नैचुरल रिसोर्सेज, इंप्रोवाइज्ड आदिवासीज गेट इंप्रीजन: अ स्टडी ऑफ अंडर ट्राय़ल इन झारखंड, नाम से रिपोर्ट भी पब्लिक फोरम में रखी.

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