प्रत्येक 8 सितंबर को पश्चिमी सिंहभूम जिले के गुवा में 43 साल पहले हुए एक आंदोलन ने झारखंड राज्य बनाने में मदद की थी, वह है 8 सितंबर 1980 की गुवा गोली कांड.
यह घटना झारखंड अलग राज्य आन्दोलन की एक मुख्य टर्निंग प्वाईंट तो थी ही, यह भारत की पहली घटना भी बन गई, जिसमें अंतरराष्ट्रीय रेडक्रॉस नियमों का उल्लंघन हुआ.
इस घटना में आदिवासियों पर तत्कालीन बिहार सरकार के बीएमपी जवानों ने न सिर्फ गोलियां दागी, अस्पताल पहुंचने पर वहां भी घेर कर मारा.
क्या है गुआ नरसंहार ?
जंगलों में अपने गांवों की जमीनों पर फिर से दखल करने और खेती के लिए जंगल की कटाई को लेकर की प्रक्रिया में तत्कालिन सरकार ने अगस्त 1980 में 108 लोगों को गुआ थाना ले गई थी.
झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़े नेतृत्वकर्ताओं में मछुआ गगराई, सूला पूर्ति, मोरा मुंडा, देवेंद्र मांझी, बहादूर उरांव आदि शामिल थे. गिरफ्तारी के खिलाफ योजना बनायी गई थी. इसी के लिए आठ सितंबर 1980 को गुआ हवाई अड्डे में भीड़ जुटी थी, 108 लोगों को रिहा करने, पुलिसिया जुल्म बंद करने, गुआ के जामदा के मजदूरों को स्थायी करने, जमीन के लिए मुआवजा मांगने तथा अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर सभा बुलाई गई थी.
इस सभा में 5000 हजार लोग जुटे थे. सभा में लाठी चार्ज और गोली बारी के कारण जीतु सोरेन और बागी देवगम मारे गए, इससे गुस्से में आकर आंदोलनकारियों ने तीर चलाना शुरु कर दिया. इस क्रम में तीन-चार बिहार बीएमपी पुलिस वाले मारे गए.
सबसे भयानक घटना तब घटी जब सामने के इस्को अस्पताल में घायल पुलिसकर्मी और आंदोलकारियों को लाया गया. अस्पताल को घेरकर 9 राउंड गोलिंया चलायी गई जिसमें सभी 9 आदिवासियों को मार दिया गया.
गुआ नरसंहार में मार दिए गए आदिवासी थे – 1. जीतु सुरीन, 2. बगी देवगम, 3. चुरी हांसदा, 4. चंद्रो लागुरी, 5. गांडा होनहांगा, 6. रामो लागुरी, 7. जुरा पुर्ति, 8. चेंतन चंपिया, 9. रेंगो सुरीन, 10. ईश्वर सरदार.
इन आंदोलनकारियों के याद में तत्कालिन झामुमों सांसद कृष्णा मरांडी ने दस बर्षों के बाद 1990 में गुआ साप्ताहिक हाट मैंदान में शहिदों स्थल का निर्माण कराया था. वहां पर 43 सालों से श्रद्धांजलि सभा हो रही है.
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