सन 1872 में, जब ब्रिटिश सैनिकों ने गारो पहाड़ियों में प्रवेश किया था. इस दौरान माचा रोंगक्रेक गांव के पास एक शिविर स्थापित किया। तब पा तोगन संगमा और अन्य योद्धाओं ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ हमला कर दिया. लेकिन उन्हें गोलियों की बौछार का सामना करना पड़ा. पा तोगन संगमा के पास पर्याप्त उपकरण नहीं थे. अपर्याप्त उपकरणों के कारण कई योद्धाओं को गंभीर क्षति हुयी. अंत में अपनी मातृभूमि और अपने लोगों को बचाने की कोशिश में पा तोगन संगमा की मौके पर ही मृत्यु हो गयी.
कौन थे पा तोगन नेंगमिन्ज़ा संगमा
पा तोगन नेंगमिन्ज़ा संगमा मेघालय में गारो जनजाति के एक स्वतंत्रता सेनानी थे. माना जाता है की पा तोगन नेंगमिन्ज़ा संगमा पहले गारो स्वतंत्रता सेनानी, जिन्होंने अंग्रेजों पर सीधा हमला शुरू करने के लिए युवा “अ’चिकों” के एक समूह को संगठित और प्रशिक्षित किया था.
पा तोगन नेंगमिन्ज़ा संगमा का जन्म मेघालय के पूर्वी गारो हिल्स, विलियमनगर के पास समंदा गांव में हुआ था. उनकी तुलना अक्सर पलिश्ती योद्धा ‘गोलियथ’ से की जाती है.
उनकी मृत्यु 12 दिसंबर 1872 को माचा रोंगक्रेक (मेघालय का एक गाँव) में हुई जहाँ ब्रिटिश सैनिकों ने शिविर लगाया था. पा टोगन ने रात में हमले का नेतृत्व किया जब ब्रिटिश सैनिक सो रहे थे लेकिन ब्रिटिश सेना के बेहतर हथियारों के कारण वह हार गए. पा तोगन ने पूर्वोत्तर भारत पर ब्रिटिश कब्जे का विरोध करते हुए अपनी जान गंवा दी.उन्हें गारो हिल्स, मेघालय के पहले स्वतंत्रता सेनानियों में से एक माना जाता है. इसके अलावा पा तोगन नेंगमिन्ज़ा संगमा भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में उपनिवेशवाद विरोधी प्रतिरोध आंदोलन का हिस्सा थे.
पिछले वर्ष मेघालय सरकार शहीद पा तोगन, एक गारो योद्धा, को उनकी पुण्य तिथि के उपलक्ष्य में 12 दिसंबर को सार्वजनिक अवकाश घोषित करके श्रद्धांजलि देने का फैसला लिया था.
No Comments yet!