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स्टुअर्टपुरम का कलंक: इस आदिवासी गांव के साथ क्या अन्याय हुआ?

Posted on September 7, 2023 - 4:18 pm by

आंध्रप्रदेश के बापतला जिले के चिरला ब्लॉक में एक बसा हुआ गांव है, जिसका नाम ‘स्टुअर्टपुरम’ है. यह गांव उस डरावनी जीती जागती कहानी की याद दिलाती है, जिसका दंश आज तक जनजातीय समाज झेल रहा है. साल 1871 में बने कानून (क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट, 1871) पर लागू जनजातियों के लिए यह गांव सुधार बस्ती के रूप में बसाया गया था. यह गांव फिर चर्चा में इसलिए है क्योंकि गांव पर आधारित एक तेलुगू फिल्म बन रही है.

इस गांव में येरुकला आदिवासी रहते हैं. इन आदिवासियों ने अपने गांव के पास से गुज़रने वाले हाईवे नं 48 पर एक हरे रंग का बोर्ड लगाया है. तेलुगू में लिखे गए अपील में फिल्म निर्माताओं से कहा गया है कि आदिवासियों के इस गांव को अब बदनाम करना बंद करना चाहिए.

क्या है गांव की कहानी

दरअसल, यह गांव एक अंग्रेज़ अफ़सर के नाम पर बसाया गया है. इस अंग्रेज अफ़सर का नाम हेरोल्ड स्टुअर्ट था. तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के सदस्य हेरोल्ड स्टुअर्ट (Harold Stuart) के नाम पर इस गाँव को स्थापित किया गया था. उन्नीसवीं शताब्दी की शुरूआत में वह भारत के गृहमंत्री की भूमिका में थे.

इस गांव पर बन चुकी है फिल्में

इस गांव के इतिहास और आदिवासियों के साथ हुए अन्याय पर बात करने से पहले बात उस पृष्ठभूमि की जिसकी वजह से गांव के लोगों को ये बोर्ड लगाने पड़े हैं. तेलुगु फिल्मों के स्टार रवि तेजा के साथ ‘टाइगर नागेश्वर राव’ नाम की एक फ़िल्म बन रही है. इस फ़िल्म में दिखाया गया नायक एक आदिवासी है. जी नागेश्वर राव को साल 1987 में पुलिस मुठभेड़ में मार दिया गया था. इस फ़िल्म के निर्माता अभिषेक अग्रवाल हैं जिन्होंने ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ (Film The Kashmir Files) बनाई थी.

StuartPuram गांव पर बनी फिल्म

जी नागेश्वर राव के बारे में कहा जाता है कि उनकी ‘रॉबिनहुड’ वाली छवि थी. यानि क़ानून की नज़रों में वह एक अपराधी थे. लेकिन उनके गांव के लोगों के लिए वह मसीहा से कम नहीं थे. यह पहला मौक़ा नहीं है आदिवासियों के इस गांव पर कोई फ़िल्म बन रही है. इस गांव पर 1991 में दो फ़िल्में ‘स्टुअर्टपुरम पुलिस’ (1991) और ‘स्टुअर्टपुरम डोंगालु’ (1991) के अलावा साल 2019 में ‘स्टुअर्टपुरम’ नाम की फ़िल्म बनी थी.

स्टुअर्टपुरम का इतिहास और आदिवासियों के साथ अन्याय

साल 1913 में यह गांव अंग्रेज़ों ने एक ‘सुधार बस्ती’ (reformation settlement) के तौर पर बसाया था. ब्रिटिश शासकों ने साल 1871 में क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट बनाया था. इस कानून के तहत किसी भी आदिवासी समुदाय को अपराधियों का समूह घोषित किया जा सकता था.

इस कानून को बनाने के पीछे समझ यह थी कि जब तक पूरे आदिवासी समुदाय पर नज़र नहीं रखी जाएगी तब तक अपराधियों को काबू करना मुश्किल था. इसलिए भारत के कई समुदाय पर यह सामाजिक और कानूनी कलंक सदा के लिए चस्पा कर दिया गया. साल 1897 में इस कानून में संशोधन किया गया.

इस संशोधन में यह प्रावधान किया गया कि येरुकला आदिवासी समुदाय के अपराधियों के बच्चों को मां-बाप से अलग सुधार बस्तियों में रखा जाए. लेकिन 1908 में इस कानून में हुए संशोधन के बाद पूरे आदिवासी समूह को ही सुधार बस्तियों में रख कर उन पर निगरानी की व्यवस्था की गई.

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