आदिवासी इलाकों के स्कूलों में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री पोषण निर्माण योजना (मध्यान्ह भोजन) आदि चलाया जाता है. किन्तु कई ऐसे इलाके हैं जहां पोषण के नाम पर आदिवासी बच्चों के भोजन से खिलवाड़ किया जाता रहा है. छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री पोषण निर्माण योजना के तहत अतिरिक्त पोषण के रूप में अंडा देने की योजना बनी थी किन्तु 7 आदिवासी जिलों के स्कूली बच्चों को अंडा देने की योजना शुरू ही नहीं हो सकी.
नवभारत में छपी रिपोर्ट के अनुसार नई सरकार के आने के बाद इस योजना को हरी झंडी नहीं मिली. बच्चों को उबला हुआ अंडा देने का पूरा खर्च उठाने का जिम्मा अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ने लिया था. प्रदेश के जिन जिलों में स्कूली बच्चों को प्रत्येक शाला दिवस पर मध्यान्ह भोजन के साथ उबला हुआ “अंडा देने की योजना बनी थी, वे थे बलरामपुर, सरगुजा, जशपुर, रायगढ़, सूरजपुर, नारायणपुर और कोंडागांव इस योजना के लिए स्कूल शिक्षा विभाग और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के बीच एमओयू भी हुआ था.
जिसके बाद लोक शिक्षण संचालनालय ने संबंधित जिलों को दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए थे. जानकारी के मुताबिक अंडे का पूरा खर्च फाउंडेशन द्वारा उठाया जाना था परंतु योजना को अमलीजामा पहनाते उसके पहले आचार संहिता लागू हो गई और फिर सरकार बदल गई. वहीं नई सरकार के आने के बावजूद इस योजना को लागू नहीं किया गया.
बता दें कि मध्यान्ह भोजन में बच्चों को मिलेट्स आधारित खाद्य सामग्री भी प्रदान की जानी है. पिछले साल केन्द्र सरकार ने 12 जिलों के लिए 17.97 करोड़ रूपए आवंटित भी किए थे परंतु समय मिलेटस सामग्री भी पर खरीदी नहीं होने तथा खरीदी को लेकर विवाद के चलते आवंटित राशि नहीं मिल रही लैप्स हो गई. स्कूल शिक्षा विभाग ने मिलेट्स आधारित सामग्री देने का प्रस्ताव भी शासन को भेजा है किन्तु अब तक इस पर अंतिम निर्णय नहीं हो सका है.
हालांकि अच्छी खबर यह है कि अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ब्रेकफास्ट योजना शुरू करेगी. 4 साल पहले कोरोना के पहले प्रदेश के दो ब्लॉक गौरेला पेड़ा मरवाही जिले के पेड़ा तथा कोरिया जिले के खडगवां विकासखंड में पायलट प्रोजेक्ट के तहत बच्चों को ब्रेकफास्ट देने की शुरुआत हुई थी. ब्रेकफास्ट के तहत बच्चों को प्रोटीन फोर्टिफाइड सोया बिस्किट, 30 ग्राम चिवड़ा तथा 50 ग्राम फोर्टिफाइड हलवा दिया जा रहा था. जो कोरोना के बाद यह बंद हो गया था.
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