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झारखण्ड ही नहीं, कुछ और राज्यों में भी मनाया जाता है सरहुल

Posted on April 11, 2024 - 12:17 pm by
झारखण्ड ही नहीं, कुछ और राज्यों में भी मनाया जाता है सरहुल

साल वृक्ष में नयी पत्तियां और फूलों के आगमन के साथ ही आदिवासियों के प्रमुख त्योहार सरहुल की शुरुआत हो जाती है. सरहुल भारत के झारखंड राज्य में एक वसंत त्योहार और खास त्योहार है. आदिवासी समाज इस दिन के लिए काफी लम्बा इंतज़ार करता है. यह समय होता है प्रकृति को धन्यवाद देने का. सरहुल झारखण्ड में धूमधाम से मनाया जाने वाला आदिवासी पर्व है.

वैसे तो सरहुल झारखंड राज्य में आदिवासियों का प्रमुख पर्व है किन्तु इसे देश के अन्य आदिवासी राज्यों में भी मनाया जाता है. ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखण्ड के बॉर्डर पर सटे बंगाल के कुछ हिस्से और बिहार के कुछ हिस्सों में भी मनाया जाता है. विशेषकर ओरांव, मुंडा जनजाति द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है.

यह नए साल की शुरुआत का प्रतीक है और पेड़ों, विशेषकर पवित्र साल वृक्ष की पूजा के लिए समर्पित त्योहार है. यह त्यौहार प्रकृति की पूजा का प्रतीक है और मनुष्य और प्रकृति के बीच सद्भावना को दर्शाता है. सरहुल में लोग प्रार्थना करने और समृद्ध वर्ष के लिए आशीर्वाद मांगने के लिए एक साथ आते हैं.

“सरहुल” शब्द दो शब्दों से बना है, “सर” का अर्थ है “बीज” और “हुल” का अर्थ है “पूजा करना”। इस प्रकार, सरहुल का अर्थ मूल रूप से बीजों की पूजा है, जो कृषि मौसम की शुरुआत का प्रतीक है. सरहुल को झारखण्ड में अलग अलग जनजातियों में अलग अलग नाम से भी जाना जाता है जैसे कि मुंडा जनजाति में इसे बा परोब, खोरठा में गद्दी परब और खरिया में जांगकिर, वहीं कुड़ुख में खद्दी पर्व के नाम से जाना जाता है.

बरसात की होती है भविष्यवाणी

पूजा के समय पुजारी तीन मिट्टी के बर्तनों में पानी भरते हैं, पाहन दोनों घड़ों में पानी के स्तर की जांच करता है और भविष्यवाणी करता है. यदि जल स्तर गिर गया है, तो यह संकेत देता है कि अकाल पड़ेगा या कम वर्षा होगी. यदि जल स्तर में कोई बदलाव नहीं होता है, तो समृद्धि की संभावना होती है. इसके अलावा कुछ जगहों पर सरहुल के एक दिन पूर्व नदी से केकड़ा पकड़ने की भी परंपरा होती है. जिसके पकड़कर किचन में टांग दिया जाता है और खेती के समय उसका चूर्ण बनाकर खेतों में डाला जाता है.

माना जाता ही कि इससे फसल अच्छी होती है और घर में समृद्धि आती है. यह भी अवधारणा है की जिस जगह केकड़ा मिलता है. उस जगह पानी की कमी नहीं होती है. इससे अंदाजा लगाया जाता है कि साल के दौरान अच्छी वर्षा होगी या नहीं.

सरना स्थल पर सभी पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों की धुन पर गाते और नृत्य करते हैं. सड़कों पर कई जुलूस और समूह नृत्य होते हैं. सरहुल में फूल खोंशी भी एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है. लोग अपनी छतों को साल के फूलों से सजाते हैं, जिन्हें बधाई के तौर पर भी पेश किया जाता है.

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