झारखंड आदिवासी आंदोलन का गढ़ है, जहां आदिवासी पहचान, स्वायतत्ता, जमीन, इलाका और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा हेतु विगत ढ़ाई सौ वर्षों से लगातार संघर्ष चल रहा है. झारखंड में बाबा तिलका मांझी, सिद्धो-कान्हो, चांद-भैरव, फूलो-झानो, बुद्धु भगत, जतरा ताना भगत, तेलंगा खड़िया, सिंगराय-बिंदार, निलंबर-पितंबर, बिरसा मुंडा, गया मुंडा, जयपाल सिंह मुंडा एवं गुरूजी शिबू सोरेन जैसे अनेकों आईकन मौजूद हैं.
जिनसे देशभर के आदिवासियों को प्रेरणा मिलती रहती है, लेकिन कहते हैं न कि दूर का ढोल सुहावन लगता है. विगत कुछ वर्षों से झारखंड के कुछ आदिवासियों को गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान का ढोल सुहावन लग रहा है.
हमारे लोग सबसे पहले मध्यप्रदेश स्थित ‘‘जयस’’ का ढोल खूब पीट रहे थे लेकिन अब जयस पर राष्ट्रीय पार्टियों के साथ सौदेबाजी करने का आरोप लग रहा है. गुजरात स्थित ‘‘सतीपति’’ आंदोलन से जुड़कर ‘‘पत्थलगड़ी’’ का क्या हस्र हुआ है बताने की जरूरत नहीं है. गुजरात स्थित ‘‘बीटीपी’’ का भी खुब गुण गाया जा रहा था, लेकिन ‘‘बीटीपी’’ के संस्थापक छोटू भाई वासवा का बड़ा बेटा महेश वासवा ने भाजपा में पार्टी को मार्ज करा लिया और उनका छोटा बेटा बाप पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बन गया है.
अब छोटू भाई ने ‘‘भारत आदिवासी संविधान सेना’’ नामक संगठन बनाया है. इन दिनों हमारे कुछ आदिवासी राजस्थान स्थित ‘‘भारत आदिवासी पार्टी’’ का खूब गुणगान कर रहे हैं लेकिन इस पार्टी पर गुजरात के भरूच लोकसभा सीट को लेकर राष्ट्रीय पार्टी से सौदेबाजी करने का आरोप लग रहा है.
इधर हम आदिवासियों की ‘‘पहचान और अस्मिता’’ को संविधान से मटियामेट करने वाले डाॅ. अम्बेडकर के नाम से बना पार्टी ‘‘एपीआई’’ का भी कुछ आदिवासी लोग भजन कर रहे हैं. मेरा स्पष्ट मत है कि झारखंड ने हमेशा पूरे भारत के आदिवासियों को प्रेरणा दिया है इसलिए उसी रास्ते पर हमे आगे बढ़ना चाहिए.
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